माधव
अभिमन्यु इस रण का हूं मैं
विजेता आगामी क्षण का हूं मैं
उम्र इतनी भी बड़ी नही है
पर जिम्मेदारियां सामने बहुत खड़ी है
देखकर दुखी स्वजनों को
अंतर्मन में तूफान उठते है
पूंछता हूं तुमसे माधव क्यों
कष्ट नहीं ये मिटते है
देख सको तो देखो माधव
जल रहे है ये सजल नयन
विश्वविजेता बन जाने के
सज रहे है इनमे असंख्य स्वप्न
हे माधव तुम सब जानते हो
शौर्य मेरा पहचानते हो
तुम जानते हो मैं न लौटूंगा
मृत्यु से शायद न जीतूंगा
किंतु कंठहार बना करके
विघ्नों की माला पहनूंगा
माना तनु भी ये क्षीण होगा
किंचित नहीं है भय मुझमें
आत्मा मेरी अजर अमर है
विजयी होने की है लय मुझमें
श्याम मेघ तो आते जाते है
पर इस चक्रव्यूह को मैं तोडूंगा
देखना माधव हर एक प्रयास से
इन शिलाओं को कैसे फोडूंगा
विषम परिस्थितियों में रह कर भी
ना अंतःकरण भयभीत हुआ
माधव तुम्हारी शरण पाकर
ये नश्वर शरीर निर्भीक हुआ
है मन में उठी ललकार यही
जो रुके एक पल भी पग कहीं
तुम देखना मैं अंगद के पांव सा लूंगा खुद को जड़मत वहीं
माधव ये अभिमन्यु अब
एक पल के लिए भी रुकेगा नही
नियति कितने ही प्रयत्न कर ले
शीश मेरा ये झुकेगा नहीं
अश्रु राशियों बनकर जो निकल गया
उस प्रत्येक स्वप्न को पूरा करना है
हे माधव मुझको तो
मरकर भी जीवित रहना है
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