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ठंडी छांव

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अभी कुछ दिनों पहले की बात है जब मैं अपने गांव में रहा करता था इस शहर की चिलचिलाती धूप में नहीं पेड़ों की छांव में रहा करता था जब से आया हूं महानगर जीवन दुर्दांत हो गया है याद आते है वो पल जब दोस्तो के संग घर के आंगन में खेलता था और  मन शांत रहा करता था कितना भी भागा दौड़ी कर ले पर चेहरे पर तेज नितांत रहा करता था आ गया हूं जब यहां पर कुछ नोटों की चाह में बस दौड़ा करता हूं सुबह शाम एक अनजानी राह में भूख शायद लगती भी है पर पता कहां चलता है ये होटल की रोटियों से मन कहां भरता है याद आता है वो खुली छत पर सब का साथ में बैठ कर खाना मां का कहानियां सुनाना और फिर सुनते सुनते ही सो जाना कहां दिखते है यहां वो खेत वो खलिहान यहां तो दिखते है बस भागते हुए इंसान ये उन दिनों की बात है जब मैं अपने गांव में रहा करता था इक छोटे से कमरे में नही मां पापा की छांव में रहा करता था दोस्तो के संग जहां हम नहरों में नहाया करते थे जहां भीगते सावन में भी संग साइकिल चलाया करते थे यहां तो गाड़ियों की भरमार लगी है दोस्त नहीं है यहां किराए के ड्राइवरों की कतार लगी है लौटता हूं शाम को जब तो कुछ नोट कमाकर लाता