आघात



 

आघात

शाम अभी ढली नही थी                                                            
अंबर पर निशा चढ़ी नहीं थी
सूरज का अभी पहरा था
अंधेरा भी न इतना गहरा था
कहीं से मैं भी आ रहा था
मन में कुछ गुनगुना रहा था
रास्ते में एक गुड़िया देखी
जैसे प्रेम की पुड़िया देखी 
नन्ही कली की मुस्कान देखी 
आंखो ने जैसे दुनिया जहान देखी
पांच साल की बच्ची थी वो 
पर अपनी उम्र से से भी कच्ची थी वो
मुझको देख वो तनिक मुस्कायी
फिर कुछ मन में तुतलायी
उसकी आंखों में हर्ष देखा
परमात्मा का स्पर्श देखा
मैं जल्दी में था तो निकल गया
बस वही से सब कुछ फिसल गया
मैं निकल गया जज्बात में
वही था एक सुअर घात में
सामने वो आ गया
सुनहरे सपने को वो खा गया
नन्ही आवाज में वो चिल्ला न सकी
मुंह दबा दिया उसने उसका
भैया मुझको वो बुला ना सकी
हे कृष्ण ये क्या हो गया
आज दुर्योधन भी घबरा गया
नोच लिया उस बच्ची को 
एक सुनहरा भविष्य वो खा गया
अगले प्रभात जब आंखे खोली
इधर उधर की खबर टटोली
सुनने में आया लाश मिली है
किसी मां बाप की आस मरी है
उसको मैं भी देखने पहुंचा
आंखो से पर ये देख न सका
एक पल वहां पर ठहर न सका
घबराया हुआ घर को आया
सबसे पहले मुंह छुपाया
उस नन्ही कली को मैं बचा न सका
ये सोच सोच कर रोना आया
जिन बच्चियों को हम भोज खिलाते
कुछ भेड़िए उन्ही बच्चियों को खा जाते
क्यों इन्हे नही हम मारते
सुनने सुनाने में समय गंवाते

एक को दुःशाशन सा दंड देकर

क्यों न हम और बच्चियों को बचाते

अगली पीढ़ी को यही सिखाना है
यह पाठ जरूर पढ़ाना है
शक्ति स्वरूपा की पूजा कर
गर्वित स्वयं को बनाना है
आसमान में तुम उड़ना सीखो
एक नई नजर से दुनिया देखो
नजरों में अपनी तुम ना गिरो
हर स्त्री में तुम मां को देखो


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